हिंदू संस्कृति में आश्रि्वन मास की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को आनंद व उल्लास का पर्व माना जाता है। इस पर्व का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व भी है।
ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शकर एवं माँ पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं, तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगा जाता है। भगवान कृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा को रास-लीला की थी, तथा मथुरा-वृंदावन सहित अनेक स्थानों पर इस रात को रास-लीलाओं का आयोजन किया जाता है। लोग शरद पूर्णिमा को व्रत भी रखते हैं, तथा शास्त्रों में इसे कौमुदी व्रत भी कहा गया है।
ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शकर एवं माँ पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं, तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगा जाता है। भगवान कृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा को रास-लीला की थी, तथा मथुरा-वृंदावन सहित अनेक स्थानों पर इस रात को रास-लीलाओं का आयोजन किया जाता है। लोग शरद पूर्णिमा को व्रत भी रखते हैं, तथा शास्त्रों में इसे कौमुदी व्रत भी कहा गया है।
मान्यताएं एवं वैज्ञानिक कारण :-
पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है
जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारे करती हैं। इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि प्रकृति इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करती है।
जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारे करती हैं। इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि प्रकृति इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करती है।
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का पूजन कर भोग लगाया जाता है, जिससे आयु बढ़ती है व चेहरे पर कान्ति आती है , एवं शरीर स्वस्थ रहता है। शरद पूर्णिमा की मनमोहक सुनहरी रात में वैद्यों द्वारा जड़ी बूटियों से औषधि का निर्माण किया जाता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को तैयार की गई औषधि अचूक रामबाण होती है। चंद्रमा की रात में खुले मुंह के बर्तन में खीर पकाई जाती है जिसमें चंद्र किरणों का समावेश होने से अमृत रूपी यह खीर अनेक रोगों के लिए दवा का काम करती है। विशेषकर श्वास व दमा के रोगियों को पीपल वृक्ष की छाल दूध में मिलाकर इसे धीमी आग पर किरणों के प्रकाश में तैयार कर खीर खिलाई जाती है जिससे दमा रोगी लाभांवित होते हे।
चंद्र किरणों में तैयार स्वास्थ्य खीर :-
सौंदर्य व छटा मन हर्षित करने वाली शरद पूर्णिमा की रात को नौका विहार करना, नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात प्रकृति का सौंदर्य व छटा मन को हर्षित करने वाली होती है। नाना प्रकार के पुष्पों की सुगंध इस रात में बढ़ जाती है, जो मन को लुभाती है वहीं तन को भी मुग्ध करती है। यह पर्व स्वास्थ्य, सौंदर्य व उल्लास बढ़ाने वाला माना गया है।
हमारी हर प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता हैं । अज्ञानता का नहीं......
हम सब जानते है की मच्छर काटने से मलेरिया होता है वर्ष मे कम से कम 700-800 बार तो मच्छर काटते ही होंगे अर्थात 70 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते लाख बार मच्छर काट लेते होंगे । लेकिन अधिकांश लोगो को जीवनभर में एक दो बार ही मलेरिया होता है । सारांश यह है की मच्छर के काटने से मलेरिया होता है, यह 1% ही सही है ।
मलेरिया के लिए औषधीय खीर :-
यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है । गाय के दूध की हो तो अति उत्तम, विशेष गुणकारी (आयुर्वेद मे घी से अर्थात गौ घी और दूध गौ का) इससे मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है ।
शरद पूर्णिमा से संबंधित व्रत कथा इस प्रकार है। एक साहूकार था। उसके दो पुत्रिया थीं, उनमें से एक शरद पूर्णिमा का व्रत रखती थीं व दूसरी व्रत को अधूरा छोड़ देती थीं। परिणामस्वरूप दूसरी के जो संतान होती थी वह मर जाया करती थी। इससे दुखी होकर उसने पंडितों से इसका कारण जानना चाहा तो मालूम हुआ कि व्रत पूरा न करने की वजह से ऐसा होता है। इसके बाद वह पूरा व्रत करने लगी किंतु फिर भी लड़का होने के बाद वह मर गया तो वह अपनी बहन को बुला लाई। उसकी साड़ी को छूते ही मृतक पुन: जीवित हो गया। इससे उसके मन में व्रत के प्रति स्नेह हुआ व आस्था बढ़ी। इसके बाद शरद पूर्णिमा के व्रत का महत्व बढ़ गया ओर इसी कारण से इस व्रत को संतान सुख देने वाला भी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को जो औरत गर्भ धारण करती है, वह निश्चित रूप से प्रतिभाशाली, स्वस्थ चंद्र जैसी काति वाले पुत्र को जन्म देती है |
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