important links

Tuesday 21 April 2015

Photosynthesis Explained in Mahabharata

प्रकाश संश्लेषण अभिक्रिया का महाभारत में वर्णन

Photosynthesis Explained in Mahabharata

शौनकेनैवम उक्तस तु कुन्तीपुत्रॊ युधिष्ठिरः पुरॊहितम उपागम्य भरातृमध्ये ऽबरवीद इदम [1] ------------------------------------------------ परस्थितं मानुयान्तीमे बराह्मणा वेदपारगाः  चास्मि पालने शक्तॊबहुदुःखसमन्वितः [2] ------------------------------------------------ परित्यक्तुं  शक्नॊमि दानशक्तिश नास्ति मे थम अत्र मया कार्यं भगवांस तद बरवीतु मे [3] ------------------------------------------------ मुहूर्तम इव  धयात्वा धर्मेणान्विष्य तां गतिम युधिष्ठिरम उवाचेदं धौम्यॊ धर्मभृतां वरः [4] ------------------------------------------------ पुरा सृष्टनि भूतानि पीड्यन्ते कषुधया भृशम ततॊ ऽनुकम्पया तेषांसविता सवपिता इव [5] ------------------------------------------------ गत्वॊत्तरायणं तेजॊ रसान उद्धृत्यरश्मिभिः दक्षिणायनम आवृत्तॊ महीं निविशते रविः [6] ------------------------------------------------कषेत्रभूते ततस तस्मिन्न ओषधीर ओषधी पतिः दिवस तेजः समुद्धृत्य जनयाम आस वारिणा [7] ------------------------------------------------ निषिक्तश चन्द्र तेजॊभिः सूयते भूगतॊ रविः ओषध्यः षड्रसामेध्यास तदेवान्धस् पराणिनां भुवि [8] ------------------------------------------------ एवं भानुमयं हयअन्नं भूतानां पराणधारणम पितैष सर्वभूतानां तस्मात तं शरणं वरज [9] ------------------------------------------------ राजानॊ हि महात्मानॊ यॊनिकर्म विशॊधिताः उद्धरन्ति परजाः सर्वास तप आस्थाय पुष्कलम[10] [महाभारत वन पर्व भाष्य] -----------------------------------------------
अर्थ - शौनक ऋषि केसमक्ष अपने भाइयों के सामने कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने कहा - हेऋषिवरब्रह्मा जी की बांते जो वेदों मेंलिखी गयी हैउनका अनुपालन करते हुएमैं वन की ओर गमन कर रहा हूँमै अपने अनुचरो का समर्थन उनका पालन करने में असमर्थ हूँउन्हें जीविका प्रदान करने की शक्ति मेरे पास नहीं हैअतः हे!मुनिश्रेष्ठ बताइए अब मुझे क्या करना चाहिएअपनी योगशक्तियों द्वारा संपूर्ण वस्तुस्तिथि का पतालगाकर गुणी पुरुषो में श्रैष्ठ धौम्ययुधिष्ठिर के सन्मुख होकर बोले - "हे कुन्तीपुत्रतू अपने अनुजों कीजीविका की चिंता मत करतेरा कर्तव्य एक पिता का हैअति प्राचीन काल से ही सूर्यदेव अपनेमृत्युलोकवासी बालकों की जीविका चलाते अर्थात उन्हें भोजन देते चले  रहें हैंजब वे भूंख से पीड़ितहोते हैतब सूर्यदेव उन पर करुणा बरसाते हैंवे अपनी किरणों का दान पौधों को देते हैंउनकी किरणेंजल को आकर्षित करती हैंउनका तेज (गर्मीसमस्त पृथ्वी के पेड़-पौधों में प्रसारित (फैलताहोता है,तथा पौधे भी उनके इस वरदान (प्रकाशका उपयोग करते हैतथा मरुत (हवा या कह सकते है CO2) एवंइरा (जलकी शिष्टि (सहायतासे देवान्धस् (पवित्र भोजनका निर्माण करते हैंजिससे वे इस लोक(संसार/मनुष्यके जठरज्वलन (भूखको शांत करते हैंसूर्यदेव इसीलिए सभी प्राणियों के पिता हैं!युधिष्ठिरतू नहींसमस्त प्राणी उन्ही के चरणों में शरण लेते हैंसारे उच्च कुल में जन्मे राजातपस्याकी अग्नि में तपकर ही बाहर निकलते हैंउन्हें जीवन में वेदना होती ही हैअतः तू शोक ना करजिसप्रकार सूर्यदेव संसार की जीविका चलाते हैंउसी प्रकार तेरे अनुजों के कर्म उनकी जीविका चलाएंगेहेगुणीतू कर्म में आस्था रख! सास्वत

No comments:

Post a Comment