प्रकाश संश्लेषण अभिक्रिया का महाभारत में वर्णन
Photosynthesis Explained in Mahabharata
शौनकेनैवम उक्तस तु कुन्तीपुत्रॊ युधिष्ठिरः पुरॊहितम उपागम्य भरातृमध्ये ऽबरवीद इदम [1] ------------------------------------------------ परस्थितं मानुयान्तीमे बराह्मणा वेदपारगाः न चास्मि पालने शक्तॊबहुदुःखसमन्वितः [2] ------------------------------------------------ परित्यक्तुं न शक्नॊमि दानशक्तिशच नास्ति मे कथम अत्र मया कार्यं भगवांस तद बरवीतु मे [3] ------------------------------------------------ मुहूर्तम इव स धयात्वा धर्मेणान्विष्य तां गतिम युधिष्ठिरम उवाचेदं धौम्यॊ धर्मभृतां वरः [4] ------------------------------------------------ पुरा सृष्टनि भूतानि पीड्यन्ते कषुधया भृशम ततॊ ऽनुकम्पया तेषांसविता सवपिता इव [5] ------------------------------------------------ गत्वॊत्तरायणं तेजॊ रसान उद्धृत्यरश्मिभिः दक्षिणायनम आवृत्तॊ महीं निविशते रविः [6] ------------------------------------------------कषेत्रभूते ततस तस्मिन्न ओषधीर ओषधी पतिः दिवस तेजः समुद्धृत्य जनयाम आस वारिणा [7] ------------------------------------------------ निषिक्तश चन्द्र तेजॊभिः सूयते भूगतॊ रविः ओषध्यः षड्रसामेध्यास तदेवान्धस् पराणिनां भुवि [8] ------------------------------------------------ एवं भानुमयं हयअन्नं भूतानां पराणधारणम पितैष सर्वभूतानां तस्मात तं शरणं वरज [9] ------------------------------------------------ राजानॊ हि महात्मानॊ यॊनिकर्म विशॊधिताः उद्धरन्ति परजाः सर्वास तप आस्थाय पुष्कलम[10] [महाभारत वन पर्व ३. भाष्य] -----------------------------------------------
- अर्थ - शौनक ऋषि केसमक्ष अपने भाइयों के सामने कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने कहा - हे! ऋषिवर, ब्रह्मा जी की बांते जो वेदों मेंलिखी गयी है, उनका अनुपालन करते हुए, मैं वन की ओर गमन कर रहा हूँ, मै अपने अनुचरो का समर्थनव उनका पालन करने में असमर्थ हूँ, उन्हें जीविका प्रदान करने की शक्ति मेरे पास नहीं है, अतः हे!मुनिश्रेष्ठ बताइए अब मुझे क्या करना चाहिए? अपनी योगशक्तियों द्वारा संपूर्ण वस्तुस्तिथि का पतालगाकर गुणी पुरुषो में श्रैष्ठ धौम्य, युधिष्ठिर के सन्मुख होकर बोले - "हे कुन्तीपुत्र! तू अपने अनुजों कीजीविका की चिंता मत कर, तेरा कर्तव्य एक पिता का है, अति प्राचीन काल से ही सूर्यदेव अपनेमृत्युलोकवासी बालकों की जीविका चलाते अर्थात उन्हें भोजन देते चले आ रहें हैं! जब वे भूंख से पीड़ितहोते है, तब सूर्यदेव उन पर करुणा बरसाते हैं, वे अपनी किरणों का दान पौधों को देते हैं, उनकी किरणेंजल को आकर्षित करती हैं, उनका तेज (गर्मी) समस्त पृथ्वी के पेड़-पौधों में प्रसारित (फैलता) होता है,तथा पौधे भी उनके इस वरदान (प्रकाश) का उपयोग करते है, तथा मरुत (हवा या कह सकते है CO2) एवंइरा (जल) की शिष्टि (सहायता) से देवान्धस् (पवित्र भोजन) का निर्माण करते हैं! जिससे वे इस लोक(संसार/मनुष्य) के जठरज्वलन (भूख) को शांत करते हैं! सूर्यदेव इसीलिए सभी प्राणियों के पिता हैं!युधिष्ठिर, तू नहीं! समस्त प्राणी उन्ही के चरणों में शरण लेते हैं! सारे उच्च कुल में जन्मे राजा, तपस्याकी अग्नि में तपकर ही बाहर निकलते हैं, उन्हें जीवन में वेदना होती ही है, अतः तू शोक ना कर, जिसप्रकार सूर्यदेव संसार की जीविका चलाते हैं, उसी प्रकार तेरे अनुजों के कर्म उनकी जीविका चलाएंगे! हेगुणी! तू कर्म में आस्था रख! सास्वत
No comments:
Post a Comment